उसका दर्द न देखा गया,
उसके आंसू न पोछे गए,
उसकी परेशानी न समझी गयी,
परायों का क्या ! अब तो उसके अपने भी पराये हो गए,
वैसे तो मौजूद तो सब थे,
पर वे सब सिर्फ तमाशे देखते रह गए,
यह इस समाज की एक दर्द भरी कहानी,
दर्द से मिट रही एक ज़िन्दगानी है,
सब सिर्फ उसके कपड़े,उसके जिस्म को देखते रहे,
कुछ बिगड़े हुए मुसाफ़िर उसपर तेज़ाब फेक गए,
कुछ बिगड़े हुए मुसाफ़िर दुष्कर्म करते रहे,
मगर मौजूद तो सब थे!! वे सिर्फ तमाशा देखते रह गए,
परायों में अपना न जाने कोई अभी अपना ख़ास होता है,
बिना जान-पहचान हमारे लिए जंग लड़ता है,
बिना जाने हमारी मदद करता है,
शायद वही उस भीड़ से अलग होता है,
आज जबकि इंसानियत खत्म होते जा रही है,
शायद वही आज भी इंसानियत का देवता होता है,
वो हमारे ईश्वर का भेजा हुआ एक सुनहरा तोहफ़ा होता है।
Babita patel
01-Feb-2023 05:58 AM
nice
Reply
Shashank मणि Yadava 'सनम'
01-Oct-2022 04:39 PM
बहुत ही सुंदर सृजन
Reply
Raziya bano
29-Sep-2022 08:22 PM
Nice
Reply