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लेखनी प्रतियोगिता -29-Sep-2022

समाज


उसका दर्द न देखा गया,
उसके आंसू न पोछे गए,
उसकी परेशानी न समझी गयी,
परायों का क्या ! अब तो उसके अपने भी पराये हो गए,
वैसे तो मौजूद तो सब थे,
पर वे सब सिर्फ तमाशे देखते रह गए,
यह इस समाज की एक दर्द भरी कहानी,
दर्द से मिट रही एक ज़िन्दगानी है,
सब सिर्फ उसके कपड़े,उसके जिस्म को देखते रहे,
कुछ बिगड़े हुए मुसाफ़िर उसपर तेज़ाब फेक गए,
कुछ बिगड़े हुए मुसाफ़िर दुष्कर्म करते रहे,
मगर मौजूद तो सब थे!! वे सिर्फ तमाशा देखते रह गए,
परायों में अपना न जाने कोई अभी अपना ख़ास होता है,
बिना जान-पहचान हमारे लिए जंग लड़ता है,
बिना जाने हमारी मदद करता है,
शायद वही उस भीड़ से अलग होता है,
आज जबकि इंसानियत खत्म होते जा रही है,
शायद वही आज भी इंसानियत का देवता होता है,
वो हमारे ईश्वर का भेजा हुआ एक सुनहरा तोहफ़ा होता है।

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7 Comments

Babita patel

01-Feb-2023 05:58 AM

nice

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बहुत ही सुंदर सृजन

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Raziya bano

29-Sep-2022 08:22 PM

Nice

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